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कविता
फिर जागी आस
कृष्णमोहन झा
फिर भीगी धरती
फिर मचली घास
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फिर जागी आस
शीर्ष पर जाएँ
हिंदी समय में कृष्णमोहन झा की रचनाएँ
कविताएँ
अकेले ही नहीं
अंतराल
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इस जीवन में
इसका क्या मतलब है!
उसका डर
उसी का समाहार
गड़ेरिया
जब बीत जाएगा समय
तुम्हें मुक्त करता हूँ
तुलसी स्वीट्स
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फिर जागी आस
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मैं समय की एक लंबी आह
महानगर में चाँद
मिट्टी का बर्तन
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वे तीन
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सारी चीजें नहीं
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शीर्ष पर जाएँ
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